JAI MAHAKAL

Saturday 22 July 2017

Kalbhairav


हमारे भारत में अनेक ऐसे मंदिर है जिनके रहस्य आज तक अनसुलझे है। इन्हीं में शामिल है महाकाल की नगरी उज्जैन का काल भैरव मंदिर। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहां पर भगवान काल भैरव साक्षात रूप में मदिरा पान करते है। मंदिर में जैसे ही शराब से भरे प्याले काल भैरव की मूर्ति के मुंह से लगाते है देखते ही देखते शराब
के प्याले खाली हो जाते है।

कहां जाती है शराब जानने के लिए अंग्रेज ने किया ये काम कहा जाता है कि बहुत साल पहले एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा इस बात की गहन तहकीकात करवाई गई कि आखिर शराब जाती कहां है। उसने प्रतिमा के आसपास काफी गहराई तक खुदाई करवाई लेकिन जब नतीजा कुछ भी नहीं निकला तो वो अंग्रेज भी काल भैरव का भक्त बन गया।

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प्राचीन समय में सिर्फ आते थे तांत्रिक कहते हैं प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिको ही आते थे। यहां आकर उनके द्वारा तंत्र क्रियाएं की जाती थी। बाद में ये मंदिर आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया। और फिर यहां भीड़ जुटनी शरू हो गई। कुछ साल पहले यहां बलि प्रथा ख़त्म की गई है। अब भगवान भैरव को केवल मदिरा का भोग लगाया जाता है। यूं तो काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है लेकिन यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, इसे कोई नहीं जान पाया।

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मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर, क्षिप्रा नदी के तट पर बसा कालभैरव मंदिर 6000 साल पपुराना बताया जाता है। इसे एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर कहा जाता है। वाम मार्ग के मंदिरों की ये विशेषता होती है कि यहां मंदिरों में मदिरा, मांस, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।

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ये कहना है मंदिर के पुजारी का

मंदिर का जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था। मंदिर के पुजारी के अनुसार स्कंद पुराण में काल भैरव के जगह के धार्मिक महत्व का जिक्र किया गया है। कहते हैं चारों वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना करने का फैसला किया तो देवता भगवान शिव की शरण में गए ताकि अब पांचवा वेद न रचा जा सके। लेकिन फिर भी ब्रह्मा जी ने किसी की बात नहीं मानी। इस पर शिवजी को गुस्सा आया और उन्होंने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया।

फिर उग्र स्वभाव के इस बालक ने क्रोध में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया। लेकिन बाद में ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के भैरव कई स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति कोई नहीं मिली। अंत में भैरव को वापस भगवान शिव के पास जाना पड़ा। शिव ने भैरव को बताया कि वो उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करें। तब जाकर उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। उसी समय से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। बाद में इस जगह पर एक बड़ा मंदिर बनवाया गया।

Kalbhairav Original Pic



Kalbhairav Batukeshwar, Nagpur





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